सावित्रीबाई फुले निबंध | Savitribai Phule सावित्री बाई फुले की जीवनी हिंदी में | सावित्रीबाई फुले का इतिहास | सावित्रीबाई फुले कार्य | सावित्रीबाई फुले जयंती | सावित्रीबाई फुले राजनेत्या | सावित्रीबाई फुले कविता
हम लोग बचपन में सावित्रीबाई फुले निबंध पड़े थे, तब क्या पता था कि एक दिन में खुद इंटरनेट पर सावित्रीबाई फुले की जीवनी हिंदी में लिखूंगा।
पढ़ने वाला सभी दोस्त और छात्र-छात्राओं क्या आपको पता है सावित्रीबाई फुले कौन थे? सावित्रीबाई फुले की जीवनी या फिर सावित्रीबाई फुले का इतिहास क्या है? और सावित्रीबाई फुले कार्य या फिर सावित्रीबाई फुले की कविताओं के बारे में?
ठीक है अगर आपको नहीं पता है तो आखिर तक पढ़ते रहिए आपको सारे जानकारी मिल जाएगा। तो आइए हमलोग सावित्रीबाई फुले के जन्म से शुरू करते है।
Savitribai Phule निबंध सावित्री बाई फुले की जन्म और प्रारंभिक जीवन
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में नारगांव नामक स्थान पर हुआ था। अगर देखा जाए तो सावित्रीबाई फुले का जन्म स्थान पुणे से 50 किलोमीटर दूर है। ,सावित्रीबाई फुले उनके माता-पिता की तीन बेटियों मे से सबसे छोटी बेटी थी। उनका पिता का नाम खंडोजी नेवासे पाटिल और मत का नाम लक्ष्मी बाई था। उन दोनों माली समुदाय से थे। ,ऐसे तो सावित्रीबाई फुले उनके जीवन भर में कई सार्थक काम किया लेकिन बचपन में कोई बड़ा करें उससे पहले ही उसकी शादी हो गई थी। सन 1840 में मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्ष के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ।
सावित्रीबाई फुले की विवाह जीवन और शिक्षा
महात्मा ज्योतिराव फुले येणे की सावित्री बाई फुले के पति स्वयं एक महान विचारक, कार्यकर्ता, समाज सुधारक, दार्शनिक, लेखक, संपादक, और क्रन्तिकारी थे। ,सावित्रीबाई बचपन से पढ़े-लिखे नहीं थे शादी के बाद ज्योतिराव फुले ने ही उन्हें पढ़ना और लिखना सिखाया। ज्योतिराव फुले ने सावित्री देवी फुले की प्राथमिक शिक्षा पूरी की थी, उसके बाद आगे की शिक्षा उनके दोनों दोस्तों सखाराम यशवंत परांजपे और केशव शिवराम भावलकर ने पूरी करने में मदद करें। ,सावित्रीबाई फुले को शुरू से ही पढ़ाई में काफी दिलचस्पी थी। सन 1848 में सावित्री बाई फुले भारत देश की पहला महिला शिक्षिका बनी। बाद में वह उस स्कूल की प्रधानाध्यापिका बनीं।
सावित्रीबाई फुले करियर और जीवन परिचय
यह भी जान लीजिए सावित्रीबाई फुले ने जो स्कूल में पढ़ाना शुरू किया था वह स्कूल सावित्रीबाई फुले और उनके पति ज्योतिराव फुले के द्वारा बनाया गया लड़कियों के लिए पहला स्कूल है।
यह स्कूल पुणे के भीदे वडा में बनाया गया था। इस स्कूल बनाने में और एक का नाम लेना बहुत जरूरी है, जिनको ज्योतिराव फुले और सावित्री देवी फुले की मार्गदर्शक कहा जाता है, उनका नाम है संगूबाई फुले।
जैसे कि मैंने बताया हूं सावित्रीबाई फुले नहीं उनकी कैरियर स्कूल शिक्षिका के रूप में शुरुआत करें। लेकिन उस समय वह काम इतना आसान नहीं था। क्योंकि उस समय लड़कियों की पढ़ने और लिखने में कोई इजाजत नहीं थी। खास करके दलित समाज की लड़कियों को पढ़ाई में कोई आगे लेकर नहीं जाता था।
जैसे-जैसे सावित्रीबाई फुले ने पढ़ाई की गुण को समझने लगा तो उनके अंदर एक सोच पैदा हुआ, और वह है दलित समाज के लड़कियों को पढ़ाई लिखाई के माध्यम से आगे लेकर जाना।
उस समय भिदे वडा में तात्या साहब भिड़े का घर था, और वह इन तीनों के काम में बहत पसंद करते थे। उस स्कूल के पाठ्यक्रम में गणित, विज्ञान, और सामाजिक पठन-पाठन शामिल था।
उस समय यह युगल महिला शिक्षा की उन्नति के लिए बहुत सक्रिय था। एक के बाद एक 3 स्कूल महिलाओं के पठन-पाठन के लिए पुणे में शुरू किया गया था। उस समय इन तीन स्कूल में लगभग 150 लड़कियों शिक्षा प्राप्त करने के लिए भर्ती हुए थे।
पढ़ाने का तरीका बदलें सावित्रीबाई फुले की स्कूल मे
लेखिका दिव्या कानदुकुरी का मानना था, सावित्रीबाई फुले के स्कूलों में जिस तरीके से पढ़ाई चलती थी वह सरकारी स्कूलों से बेहतर था।
जैसे कि मैंने पहले ही बताया हूं सावित्रीबाई फुले कि स्कूल में पाठ्यक्रम अलग था। ठीक उसी तरह फुले की स्कूल में शिक्षा देने की तरीका सरकारी स्कूलों से अलग था।
पढ़ाने की तरीका अलग होने की वजह से लड़कियों को सावित्रीबाई फुले के स्कूल में पढ़ने की दिलचस्पी बढ़ी। और कुछ समय बाद सरकारी स्कूलों से ज्यादा लड़कियों फुले के स्कूल में भर्ती हुए।
सावित्रीबाई फुले की जीवन का संघर्ष
आज सोच कर हैरानी होती है, कि उस समय सावित्रीबाई और ज्योति राव फुले जब समाज को और समाज की लड़कियों को आगे ले जाने में कोशिश कर रहे थे। कुछ स्थानीय संप्रदाय के लोग इस काम मैं विरोध कर रहे थे।
क्योंकि मैंने पहले ही बताया हूं उस समय लड़कियों की पढ़ने और लिखने में इजाजत नहीं थी। लेखिका कानदुकुरी की लेखन से पता चलता है, सावित्रीबाई फुले उनके बैग में अलग से एक साड़ी रखते थे, क्योंकि विरोध करने वाले लोग गालिओ के साथ साथ उनके शरीर पर पत्थर, गोबर से आघात करते थे।
जाहिर सी बात है तब उन दोनों ज्योतिराव फुले की पिता के घर पर रहते थे। कुछ समय बाद सन 1849 में ज्योतिराव के पिता उन दोनों को घर छोड़ने की बात करें। क्योंकि उस समय ब्राम्हण ग्रंथ अनुसार इस काम को पाप माना जाता था।
सावित्रीबाई फुले कार्य
“जाओ और शिक्षा ग्रहण करो” नामक एक कविता के माध्यम से उन्होंने उन सभी लोगों को प्रोत्साहित किया जिन सभी लोग शिक्षा प्राप्त करके मुक्त होना चाहते थे।
जैसे कि उन्होंने शुरू से ही लड़कियों के लिए काम किया था। तो समय के साथ वह एक उत्साही नारीवादी बन गए। समाज में महिलाओं के अधिकार को लेकर जागरूकता बढ़ाना शुरू किया जिसके लिए “महिला सेवा मंडल’ स्थापना करि।
महिला सेवा मंडल द्वारा सावित्री बाई फुले ने समाज का जातिगत भेदभाव दूर करने की कोशिश करें क्योंकि इस सभा में शामिल होने वाले सभी महिलाओं को एक ही चटाई पर बैठना था।
सावित्रीबाई फुले ने अपने जीवन काल में शिशु विरोधी कार्यकलाप को भी रोकने की कोशिश की। उन्होंने एक महिला आश्रय केंद्र खुला जहां पर ब्राम्हण विधवा महिलाओं सुरक्षित संतान प्रसव कर सके, एवं चाहे तो उन्हें गोद लेने के लिए उस केंद्र पर छोड़ भी सकते हैं। सावित्रीबाई फुले बाल विवाह के खिलाफ थे और विधवा विवाह की पक्ष में थे।
इसके अलावा सावित्रीबाई फुले ने उनके जीवनकाल में कई सारे ऐतिहासिक कार्यकलाप किया है जिनके बारे में आज के पीढ़ियों को पता नहीं।
सावित्रीबाई फुले की निधन
1897 जब दुनिया भर में प्लेग महामारी प्रकट हो रहा था उस समय नालासोपारा के इलाके में सावित्रीबाई फुले और उनके दत्तक पुत्र यशवंत ने मिलकर एक अस्पताल बनाएं। पांडुरंग बाबाजी गायकवाड के बेटे की प्लेग रोग से संक्रमित होने की खबर सुनकर सावित्रीबाई फुले उनको अपनी पीठ पर लेकर अस्पताल आए थे। और उससे ही सावित्रीबाई खुद प्लेग रोग में संक्रमित हो गए थे।
उसी साल अर्थात 10 मार्च 1897 रात 9:00 बजे सावित्रीबाई फुले प्लेग संक्रमित अवस्थाएं निधन हुए थे। गर्व की बात यह है कि मरने से पहले भी उन्होंने अपनी वीरता दिखाई। ऐसे महान महिला को अपनी ओर से नमन करता हूं।
सावित्रीबाई फुले को मिले सम्मान
जब हम लोग छोटे थे बचपन में बड़ों ने सिखाया था काम ऐसा करो ताकि लोग आपको सारे जिंदगी याद करें। सावित्रीबाई फुले ने महिलाओं की शिक्षा और दलित समाज के महिलाओं को आगे ले जाने में जो कार्य करें, वह बेहत सम्मानीय है। इसलिए आज भी उनको लोग सम्मान के साथ याद करते हैं।
डॉ बी आर अंबेडकर और अन्नाभाऊ साठे के साथ सावित्रीबाई फुले का नाम पिछड़े वर्ग के लोगों को लिए एक प्रतीक बन कर रह गया है और हमेशा रहेगा।
- 1998 में सावित्रीबाई फुले की तस्वीर पर डाक टिकट निकाला गया था।
- 3 जनवरी सावित्रीबाई फुले की जन्मदिन है और इस दिन को बालिका दिन नाम से मनाया जाता है पूरे पुणे महाराष्ट्र के अंदर।
- सन 2015 में पुणे यूनिवर्सिटी का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी रखा गया।
- 3 जनवरी 2017 में सबसे बड़ा सर्च इंजन गूगल ने सावित्रीबाई फुले की 186 तम जन्मदिन पर गूगल डूडल बनाए थे।
सावित्रीबाई फुले की नाम जुड़े लोकप्रिय संस्कृति में
समय के साथ सावित्रीबाई फुले को याद करने के लिए और नई पीढ़ी को सावित्रीबाई फुले के बारे में जानकारी देने के लिए सन 2016 में ‘डीडी नेशनल‘ TV चैनल “क्रांतीज्योती सावित्रीबाई फुले” नामक एक टेलीविजन सीरीज लॉन्च किए थे।
सन 2019 और 2020 के दौरान ‘सोनी मराठी‘ ने “सावित्री ज्योति” नाम का एक मराठी एलिवेशन सीरीज चलाए थे।
सावित्रीबाई फुले, एक भारतीय कन्नड़ भाषा की बायोपिक 2018 में फुले के बारे में बनाई गई थी।
2021 में, पुणे विश्वविद्यालय ने फुले की 12.5 फुट, आदमकद कांस्य धातु की मूर्ति बनाई, और इस मूर्ति को 14 फरवरी 2022 में उद्घाटन किया गया महाराष्ट्र के गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी के द्वारा। इसमें महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे भी उपस्थित थे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के द्वारा।
सावित्रीबाई फुले की अवलोकन
जीवनी | सावित्रीबाई फुले |
जन्म | 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले |
बिबाह | 1840 में मात्र 9 वर्ष की आयु में |
शिक्षा | शुरूयत पति से उसके बाद आगे बड़ता गया |
पिता का नाम | खंडोजी नेवासे पाटिल |
माता का नाम | लक्ष्मी बाई |
पति का नाम | ज्योतिराव फुले |
निधन | 10 मार्च 1897 |
FAQ सावित्रीबाई फुले निबंध
सावित्रीबाई फुले कौन थे?
सावित्रीबाई फुले भारत के पहले महिला शिक्षिका थी और वह नारी शिक्षा के लिए बहुत काम किए धीरे-धीरे वो एक नारीवादी महिला बन गए साथ ही साथ बाल विवाह के खिलाफ और विधवा विवाह के पक्ष में थे।
सावित्री बाई फुले का जन्म कब हुआ था?
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में नारगांव नामक स्थान पर हुआ था। अगर देखा जाए तो सावित्रीबाई फुले का जन्म स्थान पुणे से 50 किलोमीटर दूर है।
सावित्रीबाई फुले की माता पिता का नाम क्या है?
सावित्रीबाई फुले उनके माता-पिता की तीन बेटियों मे से सबसे छोटी बेटी थी। उनका पिता का नाम खंडोजी नेवासे पाटिल और मत का नाम लक्ष्मी बाई था। उन दोनों माली समुदाय से थे।
सावित्रीबाई फुले की पति का नाम क्या है/
सन 1840 में मात्र 9 वर्ष की आयु में उनका विवाह 12 वर्ष के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ।
सावित्रीबाई फुले की बेटे का नाम क्या है?
सावित्रीबाई फुले की बेटे का नाम यशवंत है लेकिन वह अपना बीटा नहीं थे बलकि दत्तक पुत्र थे।